- हर्ष की मृत्यु के बाद उत्तरी भारत में पुन: राजनैतिक विकेन्द्रीकरण व विभाजन की प्रक्रिया पुन: प्रारम्भा हो गई।
- हर्ष का कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था, अत: छोटे-छोटे क्षेत्रीय राज्यों ने अपने आप को पुन: स्वतंत्र कर लिया, जैसे –
- असम कामरूप के शासक भास्कर वर्मा ने कर्णसुवर्ण व उसके आस-पास के क्षेत्र को जीतकर अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की.
त्रिपक्षीय संघर्ष
- मगध – हर्ष के सामंत – माधवगुपत ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
- माधवगुप्त की मृत्यु के बाद 650 ई. में उसका पुत्र – आदित्यसेन शासक बना।
- आदित्यसेन ने आस-पास के क्षेत्रों को जीतकर परमभट्टारक व महाराजाधिराज की उपाधी धारण की।
- इसकी संपूर्ण जानकारी मदारगिरी अभिलेख से प्राप्त होती है।
- उत्तर पश्चिमी भागों में भी अनेक स्वतंत्र राज्य स्थापित।
- कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना हुई।
- ♦ कन्नौज की स्थिति:-चीनी लेखक मात्वानलिन के अनुसार चीन के नरेश (647 ई.) ने अपना एक दूत मंडल “वंग हुवनसे” के नेतृत्व में भारत भेजा।
- जिस समय यह दूत मंडल कन्नौज पहुँचा था, उस समय हर्ष की मृत्यु हो चुकी थी तथा कन्नौज पर किसी “अर्जुन” नामक शासक का अधिकार था।
- अर्जुन ने वंग के दूतमंडल को रोका व लूटपाट की।
- वंग ने तिब्बत के शासक गम्पों के पास शरण ली।
- नेपाल के शासक “अंशुवर्मा ने भी सैनिक सहायता दी”
- तिब्बत व नेपाल की संयुक्त सेना की सहायता से वंग ने अर्जुन को पराजित कर बंदी बनाकर चीन ले गया- वहीं जेल में अर्जुन की मृत्यु हो गई।
- अगले 75 वर्ष तक कन्नौज का इतिहास अंधकारमय रहा परन्तु अंत में “यशोवर्मन” नामक शासक ने कन्नौज पर अधिकार कर राजनैतिक अराजकता को समाप्त किया।
यशोवर्मन :- (725-752 ई.)
- हर्ष की मृत्यु के बाद सबसे प्रतापी शासक यशोवर्मन बना।
- इतिहासकारों के अनुसार यशोवर्मन कश्मीर के “उत्पल” वंश से संबंधित था।
- नोट- कई इतिहासकारों ने यशोवर्मन का समीकरण “कश्मीर के उत्पलवंशीय शासक शंकरवर्मन” के साथ किया है।
- इसके दरबार में “वाकपति” नामक कवि ने “प्राकृत भाषा” में “गौड़वहो” नामक ग्रंथ की रचना की।
- यशोवर्मन की मृत्यु के बाद भारत की तीन महान शक्तियाँ-
- गुर्जर प्रतिहार
- पालवंश
- राष्ट्रकूट
- राष्ट्रकूट ने कन्नौज पर अधिकार करने हेतू “महान संघर्ष” किया जिसे- त्रि-पक्षीय संघर्ष कहा जाता है।
- यशोवर्मन ने महान नाटककार “भवभूति” को आश्रय प्रदान किया।
- प्राचीन भारत में कन्नौज राजनीति का सर्वोच्च केन्द्र बिन्दु बन गया।
- आर्थिक कारण- यह क्षेत्र आर्थिक रूप से समृद्ध था।
- सर्वाधिक नदियाँ उत्तर-पूर्वी भारत में है।
- कन्नौज में कमजोर शासक- यशोवर्मा की मृत्यु के बाद कन्नौज पर आयुध वंश का अधिकार था।• आयुध वंश के शासकों में- वज्रायुद्ध, चक्रायुद्ध व इन्द्रायुद्ध प्रमुख थे।
- वज्रायुद्ध की मृत्यु के बाद – पाल वंश के शासक धर्मपाल ने इन्द्रायुद्ध व चक्रायुद्ध को शासक बनाया।
- संस्कृति का केन्द्र बिन्दू- कन्नौज व मथुरा की सांस्कृतिक विरासत व भव्यता का वर्णन मध्यकालीन भारत में अरब, तुर्क आक्रांताओं ने भी किया है।
- अरब आक्रांताओं के आक्रमण- 712 ई. के आसपास प्रारंभ हुए।
त्रिपक्षीय संघर्ष
- किन-2 के मध्य-1. गुर्जर प्रतिहार- विजेता बने 2. पालवंश 3. राष्ट्रकुट वंश- दक्षिण भारत का प्रथम राजवंश जिसने उत्तर भारत की सक्रिय राजनीति में भाग लिया।
- प्रारंभ- आठवीं शताब्दी में प्रारंभ होकर लगभग 150 वर्ष तक यह संघर्ष चला – जिसमें गुर्जर प्रतिहार विजयी रहे।
- गुर्जर प्रतिहार शासक- मिहीरभोज ने कन्नौज पर अधिकार कर इसे अपनी राजधानी बनाया।
वत्सराज
- गुर्जर प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक था।
- वत्सराज ने त्रिपक्षीय संघर्ष प्रारंभ किया।
- वत्सराज ने इन्द्रायुद्ध को पराजित किया।
- वत्सराज ने पालवंश के धर्मपाल को पराजित किया।
- वत्सराज स्वयं ध्रुव प्रथम से पराजित हुआ।
संघर्ष के चरण
- त्रि-पक्षीय संघर्ष गुर्जर प्रतिहार के शासक- वत्सराज के द्वारा प्रारंभ किया गया था।
- प्रथम चरण:- (775-795 ई. के मध्य)
- गुर्जर प्रतिहार (G.P)- वत्सराज (775ई. – 800ई.)
- पाल वंश- धर्मपाल (770ई. – 810ई.)
- राष्ट्रकूट- ध्रुव प्रथम- इस चरण में विजयी रहा था। (779ई. – 793ई.)
- राष्ट्रकूट दक्षिण भारत का प्रथम राजवंश जिसने उत्तर भारत की सक्रिय राजनीति में भाग लिया।
- G.P शासक वत्सराज ने कन्नौज के आयुध वंश के शासक इन्द्रायुद्ध व पालवंश के शासक धर्मपाल को पराजित कर-उत्तरी भारत में साम्राज्य विस्तार की नीवं रखी, परन्तु राष्ट्रकूट शासक “ध्रुव I” ने वत्सराज को पराजित कर दिया था।
- ध्रुव Ist ने पालवंश के शासक- धर्मपाल को गंगा- यमुना दौआब में पराजित किया।
- इस प्रकार प्रथम चरण का विजेता- ध्रुव प्रथम रहा।
- द्वितीय चरण:- (795-814 ई. के मध्य)
- गुर्जर प्रतिहार (G.P)- नागभट्ट II (800ई. – 833ई.)
- पाल वंश- धर्मपाल (770ई. – 810ई.)- मृत्यु के बाद = देवपाल (810-850 ई.)
- राष्ट्रकूट- गोविन्द III- विजय
- इस चरण के दौरान सर्वप्रथम- नागभट्ट II ने- धर्मपाल की सेना को मुंगेर (बिहार) के समीप पराजित किया।
- धर्मपाल ने पराजित होकर- राष्ट्रकूट शासक गोविन्द III से सहायता मांगी।
- संजन ताम्रपत्र के अनुसार- गोविन्द III ने G.P शासक- नागभट्ट II को पराजित कर पुन: दक्षिण भारत लौट आया।
- 810 ई. में धर्मपाल की मृत्यु के बाद गुर्जर प्रतिहार शासक “नागभट्ट II” ने कन्नौज पर अधिकार कर इसे अपनी राजधानी बनाया।
- प्रथम G.P. शासक
Note- पालवंश के शासक धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी जो कि वर्तमान में (बिहार- भागलपुर जिले के अचिन्तक गाँव में)
धर्मपाल ने सोमपुरी (बंगाल) व ओदन्तपुरी (बिहार) में मठों की स्थापना करवाई।
- तृतीय चरण:- (814 ई. से अन्त तक)
- इस चरण के दौरान नागभट्ट II की मृत्यु के बाद “रामभद्र” नामक निर्बल शासक- राजा बना।
- पाल वंश के शासक- धर्मपाल के पुत्र देवपाल ने रामभद्र को पराजित कर- कन्नौज पर पुन: अधिकार कर लिया।
- रामभद्र के बाद मिहिरभोज प्रथम शासक बने जो कि गुर्जर प्रतिहार वंश के महान राजा हुए।
- मिहिरभोज ने पालवंश के शासक- देवपाल, विग्रहपाल को पराजित किया व साथ ही राष्ट्रकुट वंश के शासक कृष्ण II को पराजित कर कन्नौज को लम्बे समय हेतु राजधानी बनाया।
- 880 ई. के आस-पास पालवंश के शासक नारायण पाल व राष्ट्रकूट शासक कृष्ण II ने मिहिरभोज को पराजित कर दिया।
- भोज Ist ने नर्मदा के तट पर कृष्ण II को पराजित कर मालवा पर अधिकार कर अपनी पराजय का बदला लिया।
- Note- भोज प्रथम वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
- वह अपने आप को भगवान विष्णु का अवतार मानता था।
- भोज ने “आदिवराह” की उपाधि धारण की जिसका उल्लेख ग्वालियर अभिलेख में (अन्य उपाधी- प्रभास)
- भोज ने चाँदी का ‘द्रम्म’ नामक सिक्का प्रचलित किया।
गुर्जर प्रतिहार | पाल वंश | राष्ट्रकूट वंश |
1. वत्सराज (775 ई.–800 ई.) | 1. धर्मपाल (770 ई.–810 ई.) धर्मपाल की मृत्यु के बाद | 1. ध्रुव प्रथम- विजयी रहा(779 ई.–793 ई.) |
2. नागभट्ट II (800 ई.–833 ई.) | 2. देवपाल (810 ई.–850 ई.) | 2. गोविन्द III- विजयी ( 793 ई.- 814 ई. ) |
3. नागभट्ट की मृत्यु के बाद- रामभद्र ने 3 वर्ष हेतु शासन किया | 3. विग्रहपाल (850 ई.–854ई.) | 3. अमोघवर्ष (814 ई.–878 ई.) |
4.मिहिरभोज-I (विजयी रहे) (886 ई.–885 ई.) | 4. नारायणपाल (854 ई.–915 ई.) | 4. कृष्ण II (878 ई.–915 ई.) |
5.महेन्द्रपाल- विजय (885 ई.–910 ई.) | 5. राज्यपाल (915 ई.–940 ई.) | 5. इन्द्र III (915 ई.–927 ई.) |
– महेन्द्रपाल के बाद केवल 2 वर्ष हेतु भोज II शासक बना – महिपाल प्रथम (विजय) (912 ई.- 945 ई.) |
भोज के बाद महेन्द्रपाल व महिपाल इस संघर्ष में विजय रहे तथा गुर्जर प्रतिहारों की शक्तिशाली व्यवस्था स्थापित हुई।
महेन्दपाल के दरबार में महान विद्वान “राजशेखर” निवास करते थे, जिन्होंने काव्यमिमांसा, कर्पूरमंजरी व हरविलास आदि ग्रन्थों की रचना की।
963 ई. में राष्ट्रकूट शासक- कृष्ण III ने उत्तरी भारत पर अभियान करके गुर्जर प्रतिहारों को पराजित किया- इसी से गुर्जर प्रतिहार वंश का पतन प्रारंभ हो गया।
1018 ई. में महमूद गजनवी ने गुर्जर प्रतिहार शासक- राज्यपाल व 1019 ई. में त्रिलोचनपाल को पराजित किया इसी के साथ (गुर्जर प्रतिहार) G.P. सत्ता का अंत हो गया।