अरब आक्रमण | तुर्क आक्रमण

अरब आक्रमण | तुर्क आक्रमण

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  • भारत में प्रथम मुस्लिम आक्रांता 
  • अरबों ने प्रथम आक्रमण – सिंध पर किया।
  • सिंध की राजधानी – आलौर थी।
  • सिंध का शासक दाहिर (ब्राह्मण वंश का शासक) तथा दाहिर का पिता चच था।

रावरकायुद्ध – 712 ई.

  • दाहिर व मोहम्मद बिन कासिम के मध्य 712 ई. में हुआ।
  • इराक के गवर्नर अल हज्जाज के कहने पर कासिम ने आक्रमण किया।
  • दाहिर की पत्नि – रानीबाई ने जौहर कर लिया।
  • यह भारतीय इतिहास में प्रथम स्पष्ठ जौहर का साक्ष्य (उल्लेख) है।
  • आक्रमण का कारण : समुद्री लुटेरों ने – श्रीलंका से इराक जा रहे जहाजी बेड़े को थट्टा में लूट लिया।
  • इसलिए इराक के खलीफा – वालिद ने सिंध के शासक।
  • दाहिर को – समुद्री लुटेरों को दंड का आदेश दिया।

अरब आक्रमण का उल्लेख

  • चचनामा में जिसका लेखक (अज्ञात) कासिम के किसी सिपाही द्वारा लिखित।
  • पचनामा का फारसी में अनुवाद मोहम्मद अली बिन अबु बुक्र कुफी ने किया।
  • चचनामा का अंग्रेजी में अनुवाद यू.एम. दाउद पोटा ने किया।
  • रावर के युद्ध के दौरान – कासिम ने दाहिर की दो पुत्रियाँ – सूर्या देवी व पारमल देवी  के बंदी बनाकर अपने पास रखा।
  • बाद में इन दोनों को – खलीफा वालिद की सेवा में भेज दिया।
  • पारमल व सूर्यादेवी ने वालिद को भड़का कर कासिम को मृत्युदंड दिलवा दिया।
  • Note : दाहिर की अन्य पत्नि लाडोदेवी थी।
  • कासिम ने 713 ई. में मुल्तान को जीता।
  • मुल्तान से अत्यधिक सोना लूटा।दकासिम ने मुल्तान का नाम बदलकर सोन नगर (सोने का नगर) रखा।
  • कासिम ने अपनी सेना में हिंदु सैनिकों की नियुक्ति की।
  • कासिम ने सर्वप्रथम भारत में जजिया कर लगाया सिंध विजय के बाद (712 ई.)
  • कासिम ने दिरहम नामक सिक्का प्रचलित करवाया।

अरबों की देन

  • ऊँट पालन
  • खजूर की खेती
  • पंचतंत्र का अरबी भाषा में अनुवाद कालीलावादिम्ना द्वारा।
  • बह्मसिद्धान्तिका व खण्डखाद्यक अरबी आक्रांता अपने साथ ले गए।
  • इन दोनों का अरबी भाषा में अनुवाद जल जाफरी ने किया।
  • अरब भारत में पहली बार मालाबार तट (केरल) में व्यापारियों के रूप में आये।
  • वुल्जले हेग अरबों की भारत में सिंध विजय को एक आकस्मिक कथा बताया।

तुर्क आक्रमण (10वीं शताब्दी)

  • आक्रमण का कारण : भारत की अतुल सम्पदा को लूटना।
  • कब : 10वीं शताब्दी
  • आक्रमणकारी : सुबक्तगीन, महमूद गजनवी, मौहम्मद गौरी। तुर्क गजनी (अफगान) के थे।
  • तुर्को का संस्थापक : अलप्तगीन था जिसने 962 ई. में स्थापना की।

सुबक्तगीन : (977 – 997 ई.)

  • यह अल्पतगीन का गुलाम पुत्र था।
  • 977 ई. में यामीनी वंश की स्थापना कर गजनी की राजगद्दी पर बैठा।
  • यह प्रथम तुर्क आक्रांता जिसने भारत पर आक्रमण किया।
  • पंजाब के शासक जयपाल ने सुबक्तगीन का दमन हेतु 986 ई. में एक विशाल सेना लेकर अफगान पर आक्रमण किया।
  • इस आक्रमण में जयपाल पराजित हुआ और संधि कर पुन: पंजाब लौट आया।
  • जयपाल पंजाब आकर संधि का उल्लंधन किया। वह एक गुट का निर्माण किया जिसमें कालिंजर, दिल्ली व अजमेर के शासक शामिल थे।
  • सुबक्तगीन ने 987 ई. में पंजाब पर  आक्रमण किया।
  • जयपाल व उसके सहयोगी राजा पराजित हुए।
  • सुबक्तगीन ने पेशावर व लघमान के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
  • यह भारत में विजय प्राप्त करने वाला प्रथम तुर्क शासक था।

महमूद गजनवी – (998 ई. – 1030 ई.)

  • सुबक्तगीन में अपने बड़े पुत्र इस्माइल को उत्तराधिकारी बनाया।
  • छोटे भाई महमूद ने इसे मार डाला तथा स्वयं शासक बन गया।
  • महमूद गजनवी की उपाधि : यमीन उल द्दौला (यमीन-उल-अल्लाह)
  • जिसका अर्थ (भगवान का दाहीना हाथ)
  • प्रथम तुर्क जिसने भारत पर कुल 17 बार आक्रमण किए।
  • इरफान हबीब महमूद का उद्देश्य भारत से केवल धन लूटना था।
  • न की साम्राज्य विस्तार तथा न ही इस्लाम का प्रचार प्रसार करना था।
  • आक्रमण के समय : मुल्तान (पेशावर) सिंध में मुस्लिम साम्राज्य था।
  • महमूद गजनवी भारत पर क्रमश: 17 आक्रमण किए।

प्रथम आक्रमण – पेशावर – 1000 ई. में

  • आक्रमण के समय सिंध मुल्तान का शासक अब्दुल फतेह दाउद था।

दूसरा आक्रमण  – 1001 ई. में

  • पंजाब आक्रमण पर जहाँ
  • शासक – जयपाल (हिन्दु शासक) था।
  • महमूद ने जयपाल को पराजित किया, जयपाल ने आत्मदाह कर लिया।
  • मुस्लिम इतिहासकारों ने जयपाल को ईश्वर का शत्रु कहा।

तीसरा आक्रमण : कच्छ (1004 ई.)

  • कच्छ का शासक – वाजीरा था।
  • महमूद से डरकर भाग कर सिन्धु नदी के जंगलों में छुप गया।

चौथा आक्रमण – 1005 ई.

मुल्तान के विरूद्ध इस समय मुल्तान को शासक दाऊद था।

आक्रमण का कारण : -दाउद शिया मुसलमान था।महमूद की सेना को अपने राज्य से निकलने की अनुमति नहीं थी। गजनवी ने दाउद को पराजित किया।

पाँचवा आक्रमण : (1007 ई.)

  • औहिंद (मुल्तान) के शासक सुखपाल के विरूद्ध।
  • सुखपाल जयपाल का दौहित्र था जिसे महमूद गजनवी ने मुल्तान विजय के बाद यहाँ का शासक बनाया था।
  • इस्लाम कबूल किया वह नौशाशाह के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
  • नौशाशाह – 1007 ई. अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
  • महमूद गजनवी ने आक्रमण करके पराजित कर दिया।

छठा अभियान – 1008 ई. में

  • नागरकोट (नेपाल) पर।
  • नागरकोट का हिंदु शासक – आनंदपाल था।
  • महमूद ने पराजित कर नेपाल में हिंदु मंदिर तुड़वाए।

सातवां आक्रमण – 1009 ई.

  • अलवर के नारायणपुर को लूटा व हिन्दू मूर्तियों को तुड़वाया।

आठवाँ – 1010ई. में

  • मुल्तान के खिलाफ।

नवाँ – 1013 ई. में

  • थानेश्वर (हरियाणा) पर।

दसवां आक्रमण – (1013 ई.)

  • नंदन दुर्ग (नेपाल) पर आक्रमण।
  • यहाँ का शासक – आनंदपाल का पुत्र त्रिलोचनपाल था।
  • त्रिलोचनपाल कश्मीर भाग गया।

ग्यारहवाँ आक्रमण : (1015 ई)

  • कश्मीर पर।
  • त्रिलोचननपाल का पुत्र – भीम कश्मीर यहां का शासक था।
  • महमूद ने भीम को पराजित किया।

बारहवाँ आक्रमण – 1018 ई. में

  • मथुरा व कन्नौज पर।
  • 1018 ई. में बुलन्द शहर के शासक हरदत को पराजित किया।
  • 1019 ई. में कन्नौज के शासक राज्यपाल ने महमूद के सम्मुख आत्मसमर्पण किया।
  • कांलिजर शासक – विद्याधर ने क्रोधित होकर ग्वालियर की सहायता से कन्नौज के राज्यपाल को मार डाला।
  • महमूद ने 1019 ई. में कालिंजर पर आक्रमण कर विद्याधर को पराजित किया।
  • उतबी – ‘महमूद ने एक ऐसा शहर देखा जिसका वैभव स्वर्ग के समान था।’ (मथुरा के लिए कहा।)

तेरहवाँ आक्रमण – 1020 ई. में

  • बुंदेलखण्ड किशन पर आक्रमण किया।

चौदहवां आक्रमण – 1021 ई.

  • ग्वालियर व  कालिंजर पर आक्रमण किया।
  • यहां का शासक गोण्डा था।
  • गोण्डा ने महमूद के साथ संधि कर ली।

पन्द्रहवाँआक्रमण – 1024 ई. में

  • जैसलमेर (लोगोर्द)
  • गुजरात के चिकलोदर तथा अनहिलवाड़ा पर किया तथा तीनों क्षेत्रों को लूटा।

सौलहवां आक्रमण – 1025 ई. 

  • सोमनाथ आक्रमण :-
  • इस समय गुजरात का शासक – भीम प्रथम था।
  • यह महमूद का सबसे प्रसिद्ध आक्रमण था। भगवान शिव के मंदिर को लूटा व शिवलिंग तोड़ा और 50000 हजार लोगों को मार डाला।
  • सोमनाथ मंदिर का पुन:निर्माण :-
  • महमूद द्वारा ध्वस्त मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण :
  1. 1026 ई. – भीमपाल प्रथम – चालुक्य वंश का शासक।
  2. 1096 ई. – कुमार पाल
  3. 1765 ई. – अहिल्या बाई होल्कर (1669ई. औरंगजेब के तुड़वाने के बाद) 
  4. 1950 ई. – सरदार पटेल द्वारा।

सत्रहवाँ आक्रमण – 1027 ई. में

  • मुल्तान व सिंध के जाटों के खिलाफ।
  • आक्रमण के कारण – सोमनाथ को लूटकर जाते समय महमूद को इन जाटों ने परेशान किया।
  • गजनी से पुन: लोटकर 1027 ई. सिंध व मुल्तान के जाटों को पराजित किया।

महमूद के दरबारी विद्वान

  1. उत्बी महमूद का सचिव था।
    • यह शाही इतिहासकार था।
    • ग्रंथ किताब-उल यामिनी व तारीख-उल-यामिनी
  2. फिरदोसी
    • इसे अफगानिस्तान का महाभारत कहा जाता है।
    • इसे पूर्व का हौमर/हैमर कहा जाता है।
  3. अलबरूनी
    • गजनवी के समकालीन इतिहासकार था।
    • 11वीं सदी में महमूद के साथ भारत आया था।
    • यह गणित, ज्योतिष, दर्शन, संस्कृत का विद्वान था।
    • इसके ग्रंथ किताब-उल-हिन्द – (अरबी भाषा) व तारीख-उल-हिंद जिसका यह हिन्दी में अनुवाद – रजनीकांत शर्मा ने किया था।
    • पुराणों का अध्ययन करने वाला प्रथम मुस्लिम इतिहासकार
  4. बैहाकी : महमूद का दरबारी कवि
    • महमूद के साथ भारत आया।
    • इसके ग्रंथ : तारीख-ए-सुबक्तगीन
    • लेनपूल ने इसे पूर्व का पेप्स कहा है।
    • पूर्व का होमर – फिरदौसी
  • महमूद विश्व का प्रथम शासक जिसने सुल्तान की उपाधि धारण की।
  • हिन्दु-मंदिरों व मूर्तियों को तुड़वाने के कारण इसमें मूर्तिभंजक/बुत शिकन की उपाधि धारण की।
  • गजनी के आक्रमण के कारण पंजाब पुर्णत: तुर्को के अधिकार में चला गया।
  • तुर्क – विशेष प्रकार धनुष काम में लेते थे जिसे फारसी भाषा में  नावक कहा जाता था।
  • उदय : गजनी वंश के पतन के बाद।
  • गजनी वंश का अंतिम शासक मलिक खुशख को मौहम्मद गौरी ने कैद कर 1192 ई. में मार डाला।
  • गौर के पहाड़ी क्षेत्र के निवासी था जो गजनी व हेरात के बीच का क्षेत्र है।
  • मोहम्मद गौरी जाति का निवासी था।

1155 ई. में

  • गौर का एक व्यक्ति अलाऊद्दीन हुसैन ने गजनी पर आक्रमण कर गजनी में आग लगा दी।
  • इसे जहाँ सोज (विश्व को जलाने वाला) कहा जाता है।

1163 ई. में

  • गयासुद्दीन मौहम्मद बिन साम ने गजनी के गौर नामक स्वतंत्र रियासत की स्थापना की।
  • इसका भाई मुइज्जुद्दीन/शिराबुद्दीन मौहम्मद बिन साम था।

1173 ई. में

  • गयासुद्दीन ने गिज के तुर्को पर आक्रमण कर उन्हें गजनी से भगा दिया।
  • गजनी का शासक भाई शिराबुद्दीन मो. बिन साम को बनाया जो मौहम्मद गौरी के नाम से विख्यात हुआ।
  • गौरी के भारत आक्रमण :
  • उद्देश्य भारत में साम्राज्य स्थापित करना।
  • 1st आक्रमण -1175 ई. में
  • मुल्तान के करमाथी वंश के मुसलमानों पर किया।
  • जिसमें गौरी विजय रहा।
  • 2. 1176 ई. में सिंध (उच्छ) पर विजय।
  • 3. 1178 ई. में गुजरात आक्रमण

गुजरात का शासक

  • भीमदेव II/मूलराज II था।
  • भीम II ने  अपनी विधवा माता – नायिका देवी के नेतृत्व में आबू के पास गौरी को पराजित किया।
  • यह गौरी भारत में प्रथम हार।
  • गौरी ने 1179 ई. – पेशावर विजय
  • 1181 ई.  – लाहौर विजय
  • 1189 ई. – भटिण्डा विजय की।

तराइन का प्रथम युद्ध : 1191 ई.

  • हरियाणा (करनाल)
  • पृथ्वीराज चौहान III V/s गौरी के मध्य विजय 7 करोड़ की धन सम्पदा प्राप्त।
  • पृथ्वीराज के सेनापति खेतसिंह खंगार + गोविन्दराज व खाण्डेराव थे।
  • पृथ्वीराज की विजय हुई।
  • चौहान की सबसे बड़ी भूल गौरी को जिंदा छोड़ दिया।

तराइन का द्वितीय युद्ध – 1192 ई.

  • युद्ध से पूर्व गौरी ने चौहान के पास संधि हेतु एक दूत भेजा – किवाम-उल-मुल्क चौहान – चौहान ने अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
  • इस युद्ध में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ति – गौरी की सेना के साथ भारत आये।
  • इस युद्ध में चौहान की हार हुई।
  • भारत में तुर्की सता की नींव पड़ी।

चन्दावर का युद्ध – 1194 ई.

  • (वर्तमान फिरोजाबाद)
  • गौरी V/s जयचंद गहड़वाल के मध्य।
  • गौरी ने चंदावर के युद्ध में गहड़वाल को मार डाला।
  • जयचंद कन्नौज का राजा था।
  • चंदावर के बाद गौरी दिल्ली के समीप इन्द्रप्रस्थ नगरी में कुतुबुद्दीन ऐबक को सेना का नेतृत्व सौंपकर गौरी मध्य एशिया अभियान पर चला गया।
  • खोखरों का दमन हेतु गौरी पुन: भारत लौटा।
  • खोखरों ने 15 मार्च 1206 ई. को सिन्धु के किनारे दयमक नामक स्थान पर गौरी को मार डाला।
  • गौरी का कथन ‘किसी सुल्तान के एक या दो पुत्र हो सकते है, परन्तु मेरे तो अनेक हजार तुर्क गुलाम पुत्र है, जो मेरी मृत्यु के बाद मेरे साम्राज्य के उत्तराधिकारी होंगे तथा मेरे नाम का खुतबा पढेंगे।‘
  • गौरी को भारत में तुर्क (मुस्लिम) साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है।
  • मौहम्मद गौरी के सिक्कों पर एक तरफा कलमा व दूसरी तरफ लक्ष्मी का अंकन होता था।
  • इन सिक्कों को देहलीवाल के सिक्के कहा जाता था।
  • कन्नौज के सिक्कों पर भी लक्ष्मी का अंकन मिलता है।
  • गौरी की मृत्यु के बाद ऐबक ने भारत में एक नए वंश की नींव डाली, जिसे गुलाम वशं कहा जाता है।
  • गौरी मुलत: शंसबनी वंश का था। (बौद्ध धर्म के अनुयायी)
  • सर्वप्रथम गौरी ने 1193 ई. में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।
  • सर्वप्रथम इक्ता प्रणाली  गौरी द्वारा चलाई गई परन्तु इसका वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश माना जाता है।
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