विधानसभा

  • अनुच्छेद 170 के अनुसार प्रत्येक राज्य की एक विधानसभा होगी।
  • विधानसभा को निम्न सदन/पहला सदन भी कहा जाता है।

विधानसभा सदस्यों की संख्या (अनुच्छेद 170)

Table of Contents

  • विधानसभा के प्रतिनिधियों को प्रत्यक्ष मतदान से वयस्क मताधिकार के द्वारा निर्वाचित किया जाता है। (फर्स्ट पास्ट द पोस्ट/अग्रता ही विजेता )
  • इसकी अधिकतम संख्या 500 और न्यूनतम 60 तय की गयी है तथा इनके बीच की संख्या राज्य की जनसंख्या एवं इसके आकार पर निर्भर है।
    अपवाद :- सिक्किम (32), गोवा (40), मिजोरम (40) पांडिचेरी (30)

नोट – संसद कानून बनाकर विधानसभा की सीटों में वृद्धि कर सकती है। इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता नहीं होती है।   

  • राज्यपाल आंग्ल-भारतीय समुदाय से एक सदस्य को नामित कर सकता है। यदि इस समुदाय का प्रतिनिधि विधानसभा में पर्याप्त नहीं हो। यह उपबंध 95वें संविधान संशोधन 2009 के तहत 2020 तक के लिये बढ़ा दिया गया है। (अनुच्छेद 333)

वर्तमान में सर्वाधिक विधानसभा सीटें वाले राज्य

  • उत्तरप्रदेश (403) 
  • पश्चिम बंगाल (294)
  • महाराष्ट्र (288) 
  • बिहार (243)
विधान सभानिर्वाचन क्षेत्रों की सूचीलोकेशन /राज्य की राजधानीसीटों की संख्या
उत्तर प्रदेश विधान सभाउत्तर प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सूची लखनऊ 403
पश्चिम बंगाल विधान सभापश्चिम बंगाल विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची कोलकाता 295
महाराष्ट्र विधान सभामहाराष्ट्र विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीमुंबई288
बिहार विधान सभाबिहार विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची पटना243
तमिलनाडु विधान सभातमिलनाडू विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची चेन्नई 235
मध्य प्रदेश विधान सभामध्य प्रदेश विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची भोपाल 230
कर्नाटक विधान सभाकर्नाटक विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीबेंगलुरु 225
राजस्थान विधान सभाराजस्थान विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीजयपुर200
गुजरात विधान सभागुजरात विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची गांधीनगर182
आन्ध्र प्रदेश विधान सभाआन्ध्र प्रदेश विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची हैदराबाद 175
ओडिशा विधान सभाओडिशा विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची भुवनेश्वर 147
केरल विधान सभाकेरल विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची तिरुवनंतपुरम 141
असम विधान सभाअसम विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची दिसपुर 126
तेलंगाना विधान सभातेलंगाना विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची हैदराबाद 119
पंजाब विधान सभापंजाब विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीचंडीगढ़117
छत्तीसगढ़ विधान सभाछत्तीसगढ़ विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची रायपुर 90
हरियाणा विधान सभाहरियाणा विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची चंडीगढ़90
जम्मू और कश्मीर विधान सभाजम्मू और कश्मीर विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीश्रीनगर 87
झारखण्ड विधान सभाझारखण्ड विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीरांची 82
उत्तराखंड विधान सभाउत्तराखंड विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची देहरादून 71
दिल्ली विधान सभादिल्ली विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची नयी दिल्ली 70
हिमाचल प्रदेश विधान सभाहिमाचल प्रदेश विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची शिमला68
मेघालय विधान सभामेघालय विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीशिलोंग 60
नागालैण्ड विधान सभानागालैंड विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीकोहिमा 60
अरुणाचल प्रदेश विधान सभाअरुणाचल प्रदेश विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची ईटानगर 60
मणिपुर विधान सभामणिपुर विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीइम्फाल 60
त्रिपुरा विधान सभात्रिपुरा विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची अगरतला 60
गोवा विधान सभागोवा विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूची पणजी 40
मिज़ोरम विधान सभामिजोरम विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीआइज़ोल 40
सिक्किम विधान सभासिक्किम विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीगंगटोक 32
पुदुच्चेरी विधान सभापुदुच्चेरी विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों की सूचीपुदुच्चेरी30

नोट :– दो केन्द्रशासित प्रदेश दिल्ली एवं पुडुचेरी में विधानसभा है जहाँ क्रमश: 70 एवं 30 सदस्यों की संख्या है।

हालांकि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35A समाप्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर व लद्दाख) में विभाजित कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर केन्द्रशासित प्रदेश में भी विधानसभा के गठन का प्रावधान किया गया है।   

प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र

  • अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्य के भीतर प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या के अनुसार आनुपातिक रूप से समान प्रतिनिधित्व होगा। जनसंख्या का अभिप्राय वह पिछली जनगणना है जिसकी सूची प्रकाशित की गयी है।

प्रत्येक जनगणना के बाद पुननिर्धारण

  • प्रत्येक राज्य के विधानसभा के हिसाब से सीटों का निर्धारण होगा।
  • हर राज्य का निर्वाचन क्षेत्रों के हिसाब से विभाजन होगा।
  • संसद को इस बात का अधिकार है कि वह संबंधित मामले का निर्धारण करे। इसी उद्देश्य के तहत 1952, 1962, 1972 और 2002 में संसद ने परिसीमन आयोग अधिनियम पारित किया।
  • 42वें संविधान संशोधन 1976 के तहत विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्रों को 1971 की जनसंख्या के आधार पर वर्ष 2000 तक के लिये निश्चित कर दिया गया। जिसे 84वें संविधान संशोधन 2001 के तहत 2026 तक के लिये बढ़ा दिया गया।

परिसीमन आयोग (अनुच्छेद 82)

  • अब तक चार बार परिसीमन आयोग गठित किया गया।
  • प्रथम- 1952, द्वितीय- 1962, तृतीय- 1972, चतुर्थ-2002
  • चतुर्थ परिसीमन आयोग के अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश कुलदीप सिंह को बनाया गया।
  • परिसीमन आयोग का गठन संसद द्वारा किया जाता है।

अनुसूचित जाति/जनजाति के लिये स्थानों का आरक्षण (अनुच्छेद 332)

  • संविधान में राज्य की जनसंख्या के अनुपात के आधार पर प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति की सीटों की व्यवस्था की गई है।

आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए स्थानों का आरक्षण (अनुच्छेद 333)

  • राज्यपाल अनुच्छेद 333 के तहत आंग्ल-भारतीय समुदाय से एक सदस्य को नामित कर सकता है। यदि इस समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व विधानसभा में नहीं हो तो।

विधानसभा का कार्यकाल [अनुच्छेद 172 (1)]

  • चुनाव के बाद पहली बैठक से लेकर इसका सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। इसके पश्चात विधानसभा स्वत: ही विघटित हो जाती है।

नोट :- राष्ट्रीय आपातकाल के समय में संसद द्वारा विधानसभा का कार्यकाल एक समय में एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है, हालांकि यह विस्तार आपातकाल खत्म होने के बाद छह महीनों से अधिक का नहीं हो सकता है।

विधानसभा सदस्यों के लिए अर्हताएं/योग्यताएँ (अनुच्छेद 173)

  • भारत का नागरिक हो।
  • उसे चुनाव आयोग द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेनी पड़ती है।

नोट :- विधानमंडल के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य सदन में सीट ग्रहण करने से पहले राज्यपाल या उसके द्वारा इस कार्य के लिए नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान लेगा। (अनुसूची 3)

  • 25 वर्ष की आयु होनी चाहिए।

इसके अतिरिक्त जन-प्रतिनिधत्व अधिनियम 1951 के तहत संसद द्वारा निश्चित अर्हताएं –

  • विधानसभा सदस्य बनने वाला व्यक्ति संबंधित राज्य के निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता होना चाहिए।
  • SC/ST का सदस्य होना चाहिए यदि वह SC/ST की सीट के लिए चुनाव लड़ता है। हालांकि SC/ST का सदस्य उस सीट के लिए भी चुनाव लड़ सकता है, जो उसके लिए आरक्षित न हो।

विधानसभा सदस्यों के लिए निरर्हताएं (अनुच्छेद 191)

  • यदि वह लाभ का पद धारण करता हो।
  • वह दिवालिया घोषित किया गया हो।
  • न्यायालय द्वारा विकृत्तचित्त घोषित करने पर।
  • वह भारत का नागरिक न हो या उसने विदेश में कही नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है।
  • संसद द्वारा निर्मित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
  • अनुच्छेद 192 में यह स्पष्ट उल्लेखित है कि पहली 4 स्थितियों में (लाभ का पद ले लेने पर, विकृत्तचित्त, दिवालिया तथा नागरिक नहीं रहने पर) विधानमंडल की सदस्यता भारत के निर्वाचन आयोग के परामर्श पर राज्यपाल समाप्त करते हैं। राज्यपाल को इस संदर्भ में चुनाव आयोग के परामर्श के आधार पर ही निर्णय लेना हाेता है।
    इसके अतिरिक्त जन-प्रतिनिधित्व एक्ट 1951 के तहत संसद द्वारा निश्चित निरर्हताएँ–
  • चुनाव में किसी प्रकार के भ्रष्ट आचरण या चुनावी अपराध का दोषी पाया गया हो।
  • निर्धारित समय सीमा के अन्दर चुनावी खर्च संबंधित विवरण प्रस्तुत करने में असफल रहा हो।
  • उसका किसी सरकारी ठेके कार्य अथवा सेवाओं में कोई रूचि हो।
  • दल-बदल के आधार पर व्यक्ति अयोग्य हो (दसवीं अनुसूची के उपबंधों के तहत)
  • दल-बदल के आधार पर संबंधित सदन का अध्यक्ष सदस्यता को समाप्त करता है।

नोट :- संविधान में लाभ का पद का उल्लेख नहीं है।  

शपथ

  • अनुच्छेद 188 के अनुसार विधानमंडल के सभी सदस्यों को राज्यपाल अथवा उनके द्वारा अधिकृत किये गये व्यक्ति द्वारा शपथ दिलाई जाती है।
  • विधानमंडल के सभी सदस्य अनुसूची 3 में दिये गये प्रारूप के अनुरूप संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं।

विधानसभा सचिवालय

  • अनुच्छेद 187 में यह उल्लेखित है कि प्रत्येक राज्य विधानमंडल के लिए एक सचिवालय होगा।
  • सचिवालय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भर्ती तथा सेवा-शर्तों का निर्धारण विधानसभा अध्यक्ष के परामर्श से राज्यपाल द्वारा किया जाता है।
  • यह सचिवालय विधानसभा के प्रशासनिक कार्यों की देखभाल करता है।
  • राजस्थान सन्दर्भ में विधानसभा सचिव इस सचिवालय का प्रशासनिक प्रमुख होता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी को इस पद पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाता है। 

स्थानों का रिक्त होना

  • विधानमंडल का सदस्य निम्न मामलों में अपना पद छोड़ता है। 

दोहरी सदस्यता :– संविधान के अनुच्छेद 190(1) के अनुसार कोई व्यक्ति राज्य के विधानमंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा। यदि कोई व्यक्ति दोनों सदनों के लिए निर्वाचित होता है तो राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि के उपबंधों के तहत एक सदन से उसकी सीट रिक्त हो जायेगी।

निरर्हता :–  राज्य विधानमण्डल का कोई सदस्य यदि अयोग्य पाया जाता है तो उसका पद रिक्त हो जाएगा।

त्यागपत्र :– कोई सदस्य अपना लिखित इस्तीफा विधान परिषद् के मामले में सभापति और विधानसभा के मामले में अध्यक्ष को दे सकता है। स्वीकृति की स्थिति में पद रिक्त माना जायेगा।

अनुपस्थिति :– यदि कोई सदस्य बिना पूर्व अनुमति के 60 दिन तक बैठकों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके पद को रिक्त घोषित कर सकता है।

अन्य मामले :

i.    न्यायालय द्वारा उसके निर्वाचन काे अमान्य ठहरा दिया जाए।
ii.   सदन से निष्काषित कर दिया जाए।
iii.   राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो जाए।
iv.  राज्यपाल पद पर नियुक्त हो जाए। 

विधानमंडल के पीठासीन अधिकारी

विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष

  • अनुच्छेद 178 के तहत प्रत्येक राज्य की विधानसभा अपने दो सदस्याें को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी।
  • अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का पद विधानसभा के कार्यकाल तक होता है।

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना (अनुच्छेद 179)

  • अनुच्छेद 179 के अनुसार तीन मामलों में अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष अपना पद रिक्त करते है-
  • यदि उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो जाए।
  • यदि वह सदस्य अध्यक्ष है तो उपाध्यक्ष को संबोधित करके अपना लिखित त्यागपत्र दे।
  • विधानसभा के समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जाए। इस तरह का कोई प्रस्ताव केवल 14 दिन की पूर्व सूचना के बाद ही लाया जा सकता है।

अध्यक्ष के पद के कर्त्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति (अनुच्छेद 180)

  • अनुच्छेद 180 के अनुसार जब अध्यक्ष का पद रिक्त हो तब उपाध्यक्ष या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति जिसको राज्यपाल इस उद्देश्य के लिए नियुक्त करे उस पद के कर्त्तव्यों का पालन करेगा।

जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के पद से हटाने का कोई संकल्प विचारधीन है तब उसका पीठासीन न होना (अनुच्छेद 181)

  • अनुच्छेद 181 के तहत विधानसभा की किसी बैठक में जब अध्यक्ष को इसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब अध्यक्ष या जब उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचारधीन है तब उपाध्यक्ष, उपस्थित रहने पर भी पीठासीन नहीं होगा।

विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियाँ

  • अध्यक्ष विधानसभा में व्यवस्था एवं मर्यादा को बनाये रखते हुए विधानसभा बैठकों की अध्यक्षता करता है।
  • विधानसभा में इसकी अनुमति के बिना कोई प्रस्ताव नहीं रखा जा सकता है।
  • वह सदन में संविधान तथा प्रक्रिया संबंधित का अन्तिम व्याख्याकार होता है।
  • वह सदन में अव्यवस्था की स्थिति में सभा की कार्यवाही को स्थगित, सभा की कार्यवाही के दौरान प्रयुक्त अशिष्ट एवं असंसदीय शब्दों को कार्यवाही से निष्कासित कर सकता है।
  • कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं इसका निर्णय अध्यक्ष ही करता है।
  • प्रथम मामलें में वह मत नहीं देता लेेकिन बराबर मत होने की स्थिति में वह निर्णायक मत दे सकता है।
  • कोरम की अनुपस्थिति में वह विधानसभा की बैठक को स्थगित या निलंबित कर सकता है।
  • विधानसभा की सभी समितियों के अध्यक्ष की नियुक्ति और उनके कार्यों का पर्यवेक्षण अध्यक्ष ही करता है।
  • 10 वीं अनुसूची के उपबंधों के आधार पर किसी सदस्य की निरर्हता को लेकर उठे किसी विवाद पर फैसला देता है।
  • सदन के नेता के आग्रह पर वह गुप्त बैठक को अनुमति प्रदान कर सकता है।

अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सभापति और उपसभापति के वेतन और भत्ते- (अनुच्छेद 186)

  • अनुच्छेद 186 के तहत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सभापति एवं उपसभापति का वेतन एवं भत्तों का विधानमण्डल विधि द्वारा नियत करे और जब तक इस प्रकार का उपबन्ध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भत्तो का जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट है, संदाय किया जाएगा।

राज्य विधानमंडल सत्र

अनुच्छेद 174 में राज्य विधायिका के सत्र, सत्रावसान एव उनका भंग होने का उल्लेख है।

आहूत करना :– राज्य विधानसभा के प्रत्येक सदन को राज्यपाल समय-समय पर बैठक का बुलावा भेजता है। दोनों सत्रों के बीच 6 माह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए।  राज्य विधानमंडल को एक वर्ष में कम से कम दो बार मिलना चाहिए। एक सत्र में विधानमंडल की कई बैठकें हो सकती है।

स्थगन :- बैठक को किसी समय विशेष के लिए स्थगित भी किया जा सकता है। यह समय घंटों, दिनों या हफ्तों का भी हो सकता है। अनिश्चित काल स्थगन का अर्थ है कि चालू सत्र को अनिश्चित काल तक के लिए समाप्त कर देना। इन दोनों तरह के स्थगन का अधिकार सदन के पीठासीन अधिकारी को हो।

सत्रावसान :– पीठासीन अधिकारी (अध्यक्ष या सभापति) कार्य सम्पन्न होने पर सत्र को अनिश्चित काल के लिए स्थगन की घोषणा करते है। इसके कुछ दिन बाद राष्ट्रपति सत्रावसान की अधिसूचना जारी करता है। स्थगन के विपरीत सत्रावसान सदन के सत्र को समाप्त करता है।

विघटन :– एक स्थायी सदन के तहत विधान परिषद् कभी विघटित नहीं हाेती है। सिर्फ विधानसभा ही विघटित हो सकती है। सत्रावसान के विपरीत विघटन से वर्तमान सदन का कार्यकाल समाप्त हो जाता है और चुनाव के बाद नए सदन का गठन होता है।

विधानसभा के विघटित होने पर विधेयकों के खारिज हाेने की स्थिति :-

  • विधानसभा में लंबित विधेयक समाप्त हो जाता है। चाहे मूल रूप से यह विधानसभा द्वारा प्रारंभ किया गया हो या फिर उसे विधान परिषद् द्वारा भेजा गया हो।
  • विधानसभा द्वारा पारित विधेयक लेकिन विधान परिषद् में है तो खारिज हो जायेगा।
  • ऐसा विधेयक जो विधान परिषद् में लंबित हो लेकिन विधानसभा द्वारा पारित न हो, को खारिज नहीं किया जा सकता।
  • ऐसा विधेयक जो विधानसभा द्वारा पारित हो (एक सदनीय विधानमंडल वाले राज्यों में) या दोनों सदनों द्वारा पारित हो (द्वि-सदनीय राज्यों में) लेकिन राज्यपाल या राष्ट्रपति की स्वीकृति के कारण रूका हुआ हो तो खारिज नहीं किया जा सकता।
  • ऐसा विधेयक जो विधानसभा द्वारा पारित हो (एक सदनीय) या दोनों सदनों द्वारा पारित हो (द्वि-सदनीय) लेकिन राष्ट्रपति द्वारा सदन के पास पुनर्विचार हेतु लौटाया गया हो को समाप्त नहीं किया जा सकता है।

कोरम/गणपूर्ति (अनुच्छेद 189)

  • किसी भी कार्य को करने के लिए सदन में उपस्थित सदस्यों की न्यूनतम संख्या को काेरम कहते हैं।
  • यह सदन में कुल सदस्यों का दसवां हिस्सा (पीठासीन अधिकारी सहित) या 10 (जो भी अधिक हो) होते हैं।
  • यदि कोरम पूरा नहीं हो तो पीठासीन अधिकारी सदन को स्थगित करता है।

मंत्रियों एवं महाधिवक्ता के अधिकार (अनुच्छेद 177)

  • प्रत्येक मंत्री एवं महाधिवक्ता को यह अधिकार है कि वह सदन की कार्यवाही में भाग ले, बोले तथा सदन से संबंधित समिति जिसके वह सदस्य के रूप में नामित है भाग ले सकता है लेकिन वोट नहीं दे सकता है।
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