साधारण विधेयक की प्रक्रिया
संसद में विधेयक पारित होने की प्रक्रिया,साधारण विधेयक की प्रक्रिया, विधायक कितने प्रकार के होते हैं,vidhan mandal ke karya
विधेयक का प्रारंभिक सदन
- एक साधारण विधेयक विधानमंडल के किसी भी सदन में प्रारंभ हो सकता है।
- ऐसा कोई भी विधेयक, मंत्री या किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
- विधेयक प्रारंभिक सदन में तीन स्तरों (प्रथम पाठन, द्वितीय पाठन, तृतीय पाठन) से गुजरता है।
- प्रारंभिक सदन से विधेयक के पारित होेने के बाद दूसरे सदन में विचारार्थ और पारित करने हेतु भेजा जाता है।
- एक सदनीय व्यवस्था वाले विधानमण्डल में इसे पारित कर सीधे राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है।
दूसरे सदन में विधेयक
- दूसरे सदन में भी विधेयक प्रथम पाठन, द्वितीय पाठन एवं तृतीय पाठन स्तरों के बाद पारित होता है।
- विधानसभा से पारित होने के बाद कोई भी विधेयक विधान परिषद् में भेजा जाता है, तो वहाँ निम्न विकल्प होते है-
वित्त विधेयक और धन विधेयक में क्या अंतर है?
- स्वीकृत कर दिया जाए।
- अस्वीकृत कर दे।
- संशोधन सहित पारित कर विचारार्थ हेतु विधानसभा को भेज दिया जाए।
- कोई भी कार्यवाही नहीं की जाए और विधेयक को लंबित रखा जाए।
- साधारण विधेयक पारित करने के संदर्भ में विधानसभा को विशेष शक्ति प्राप्त है।
- विधान परिषद् किसी विधयेक को अधिकतम चार माह के लिए रोक सकती है। पहली बार में तीन माह के लिए और दूसरी बार में एक माह के लिए।
- किसी विधेयक पर असहमति होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है।
- यदि कोई विधेयक विधान परिषद् में निर्मित हो और उसे विधानसभा अस्वीकृत कर दे तो विधेयक समाप्त हो जाता है।
नोट :– किसी साधारण विधयेक को पास कराने के लिए लोकसभा एवं राज्यसभा की संयुक्त बैठक का प्रावधान है।
राज्यपाल की स्वीकृति
- विधानसभा या द्विसदनीय व्यवस्था में दोनों सदनों द्वारा पारित हाेने के बाद प्रत्येक विधेयक राज्यपाल के समक्ष स्वीकृति के लिए भेजा जाता है।
- राज्यपाल के पास निम्न चार विकल्प होते हैं-
- स्वीकृति प्रदान करे।
- विधेयक को अपनी स्वीकृति देने से रोके रखे
- सदन के पास विधेयक को पुनर्विचार के लिए भेज दे।
- राष्ट्रपति के विचारार्थ विधेयक को सुरक्षित रख ले।
- यदि राज्यपाल द्वारा स्वीकृति दे दी जाती है तो विधेयक अधिनियम बन जाता है।
- राज्यपाल विधेयक को पुनर्विचार के लिए भेजता है और दोबारा सदन या सदनों द्वारा इसे पारित कर दिया जाता है और पुन: राज्यपाल के पास भेजा जाता है तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देना अनिवार्य हो जाता है।
- यदि राज्यपाल विधेयक को रोक लेता है तो विधेयक समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बनता।
- यदि कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति या तो अपनी स्वीकृति दे देते हैं उसे रोक सकते या विधानमंडल के सदन या सदनों को पुनर्विचार हेतु भेज सकते हैं। 6 माह के भीतर इस विधेयक पर पुनर्विचार अनिवार्य है।
- यदि विधेयक को उसके मूल रूप में या संशोधित कर दोबारा राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो संविधान में इस बात का उल्लेख नहीं है कि राष्ट्रपति इस विधेयक को मंजूरी दे या नहीं।
धन विधेयक के संबंध में (अनुच्छेद 198)
- धन विधेयक विधान परिषद् में पेश नहीं किया जा सकता है।
- धन विधेयक राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति से ही विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है।
- धन विधेयक को सरकारी विधेयक कहा जाता है क्योंकि यह केवल मंत्री द्वारा ही प्रस्तुत किया जाता है।
- विधानसभा में पारित होने के बाद धन विधेयक को विधान परिषद् को विचारार्थ हेतु भेजा जाता है।
- विधान परिषद् न तो इसे अस्वीकार कर सकती है, न ही इसमें संशोधन कर सकती है।
- विधान परिषद् केवल सिफारिश कर सकती है और 14 दिनों में विधेयक को लौटाना भी होता है।
- विधानसभा विधान परिषद् के सुझावों को स्वीकार भी कर सकती है और अस्वीकार भी।
- यदि विधान परिषद् 14 दिनों के भीतर विधानसभा को विधेयक न लौटाए तो इसे दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है।
- धन विधेयक को विधान परिषद् अधिकतम 14 दिन तक रोक सकती है।
- राज्यपाल धन विधेयक को राज्य विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता। सामान्यत: राज्यपाल स्वीकृति दे देता है क्योंकि इसे राज्यपाल की पूर्व सहमति से ही लाया जाता है।
नोट :-
- राज्य विधानमंडल द्वारा प्रस्तुत किसी विधेयक को अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित स्थानों की शक्ति राज्यपाल के स्वविवेक के अधीन है।
- अनुच्छेद 200 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि उच्च न्यायालय की शक्तियों में कमी करने वाला विधेयक अनिवार्य रूप से राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जायेगा। उदा. के लिए राजस्थान में 1973 में लोकायुक्त एवं 2009 में ग्राम न्यायालय से संबंधित विधेयक राज्यपाल के द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजे गये थे।
- संविधान के अनुच्छेद 201 के अनुसार जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख लिया जाता है जब राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है।
राज्य विधानमंडल के विशेषाधिकार (अनुच्छेद 194)
- राज्य विधानमण्डल के विशेषाधिकार राज्यपाल को प्राप्त नहीं होते हैं जो राज्य विधानमण्डल का अंग है।
- विशेषाधिकारों को दो श्रेणियों में बांटा जाता है एक जिन्हें राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन द्वारा संयुक्त रूप से प्राप्त किया जाता है दुसरा जिन्हें सदस्य व्यक्तिगत रूप से प्राप्त करते हैं।
सामूहिक विशेषाधिकार | व्यक्तिगत विशेषाधिकार |
सदन को अपने प्रतिवेदनों, वाद-विवादों और कार्यवाहियों को प्रकाशन करें या अन्यों को इसके प्रकाशन से प्रतिबंधित करे। | उन्हें सदन चलने के 40 दिन पहले और 40 दिन बाद तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। |
यह कुछ महत्त्वपूर्ण मामलों में गुप्त बैठक कर सकते हैं। | राज्य विधानमंडल में बोलने की स्वतंत्रता है। उसके द्वारा किसी कार्यवाही या समिति में दिए गए मत या विचार को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। |
न्यायालय सभा या इसकी समितियों की जाँच नहीं कर सकती। | जब सदन चल रहा हो, वे साक्ष्य देने या किसी मामले में गवाह उपस्थित होेने से इनकार कर सकते है। |
पीठासीन अधिकारी की अनुमति के बिना किसी व्यक्ति (सदस्य या बाह्य) को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। | |
यह फटकार या कारावास द्वारा विशेषाधिकारों के उल्लंघन या सभा की अवमानना के लिए सदस्यों सहित बाह्य व्यक्तियों काे दण्डित कर सकती है। |
- अनुच्छेद 210 के अनुसार राज्य विधानमंडल की भाषा हिंदी, एवं अंग्रेजी होगी। सदन के अध्यक्ष द्वारा अनुमति दिये जाने पर मातृभाषा में विचार अभिव्यक्त किये जा सकते हैं।
- अनुच्छेद 211 के अनुसार राज्य विधानमंडल न्यायपालिका पर कोई टिका-टिप्पणी नहीं करेगा।
- अनुच्छेद 212 के अनुसार न्यायपालिका राज्य विधानमंडल में होने वाली किसी भी व्यवहार पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगी।