संभागीय आयुक्त
- भारत में सर्वप्रथम सन् 1829 में जिला कलक्टर्स के कार्यों पर पर्यवेक्षण हेतु संभागीय आयुक्त पद सृजित किया गया था।
- 1949 में नवगठित राजस्थान में कुल 25 जिलें बनाये गये जिन्हें 5 संभागों – जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर व कोटा में विभाजित किया गया।
- राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर 1 नवम्बर 1956 को राज्य का पुनर्गठन किया गया तथा अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र भी राजस्थान में मिला दिया गया एवं राज्य का वर्तमान स्वरूप अस्तित्व में आया।
- अप्रैल 1962 में सुखाड़िया सरकार ने संभागीय व्यवस्था को समाप्त कर दिया।
- 26 जनवरी, 1987 को हरिदेश जोशी सरकार ने राज्य को 6 संभागों (जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर) में बांटकर संभागीय व्यवस्था पुन: कायम की।
- 4 जून, 2005 को भरतपुर को सांतवा संभाग बनाने की अधिसूचना जारी की गई। नवगठित भरतपुर संभाग में दो जिले भरतपुर व धौलपुर जयपुर संभाग से तथा दो जिले करौली व सवाई माधोपुर कोटा संभाग से लिये गए है।
- वर्तमान में राज्य में 7 संभाग है।
संभाग
1. | जोधपुर संभाग | जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, जालौर, सिरोही (6) |
2. | उदयपुर संभाग | उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, डुंगरपुर, प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा (6) |
3. | जयपुर संभाग | जयपुर, दौसा, अलवर, सीकर, झुंझुनूं (5) |
4. | बीकानेर संभाग | बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू (4) |
5. | कोटा संभाग | कोटा, झालावाड़, बारां, बूंदी (4) |
6. | अजमेर संभाग | अजमेर, नागौर, भीलवाड़ा, टोंक (4) |
7. | भरतपुर संभाग | भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधाेपुर (4) |
- संभागीय स्तर पर प्रशासन तंत्र का मुिखया संभागीय आयुक्त होता है जो अपने अधीनस्थ जिलों के प्रशासन पर नियंत्रण एवं उनके कार्यों में समन्वय स्थापित करने का कार्य करता है।
- संभागीय आयुक्त के पद पर वरिष्ट भारतीय प्रशासनिक सेवा (I.A.S.) का अधिकारी नियुक्त किया जाता है।
राजस्थान में जिले
- 1949 में राज्य में 25 जिले थे।
- 1956 में अजमेर-मेरवाड़ा को राजस्थान में विलय करने के पश्चात अजमेर को 26 वाँ जिला बनाया।
- इसके पश्चात राज्य में निम्न जिले और गठित किये गये।
- 27 वाँ धौलपुर – 15 अप्रैल, 1982
- 28 वाँ बाराँ – 10 अप्रैल, 1991
- 29 वाँ दौसा – 10 अप्रैल, 1991
- 30 वाँ राजसमंद – 10 अप्रैल, 1991
- 31 वाँ हनुमानगढ़ – 12 अप्रैल, 1994
- 32 वाँ करौली – 19 जुलाई, 1997
- 33 वाँ प्रतापगढ़ – 26 जनवरी, 2008
जिला प्रशासन
- प्रशासनिक सुगमता की दृष्टि से सभी राज्यों को छोटी-छोटी इकाइयों में विभक्त किया गया है जिन्हें जिला कहा जाता है।
- सन् 1772 में अंग्रेजी शासन काल में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स द्वारा ‘कलेक्टर’ का पद सृजित करने के साथ ही आधुनिक जिला प्रशासन का एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ।
- स्वतंत्रता के बाद जिला को भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण इकाई के रूप में अपनाया गया।
- भारत के संविधान में भी जिला शब्द का प्रयोग किया गया है। संविधान में जिला शब्द का अनुच्छेद 233 में जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के प्रसंग में प्रयोग किया गया है। पंचायती राज के लिए जिला परिषद् का प्रयोग अनुच्छेद 243 में किया गया है।
जिला प्रशासन के महत्व के कारण
- जिला प्रशासन तथा जिलाधीश के पद की छवि भारतीय जन साधारण के मन में परम्परागत श्रेष्ठता के रूप में अंकित है।
- भौगोलिक दृष्टि से संतुलित क्षेत्र स्थिति के कारण प्रशासनिक दृष्टि से सुविधापूर्ण तथा क्षेत्रीय स्तर तक पहुँच बनाये रखता है।
- जिला मुख्यालय तक आम आदमी का आना-जाना आसानी से होता रहता है।
- राज्य सरकार के समस्त कार्यालय प्राय: जिला स्तर पर स्थापित होने के कारण राज्य की राजधानी से समन्वय स्थापित करने में सुविधा रहती है।
- ऐतिहासिक निरन्तरता के साथ-साथ जिला एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान तथा अपनत्व का बोध कराता है।
- जिला प्रशासन स्थानीय समस्याओं से अवगत रहता है।
जिला प्रशासन के कार्य
जिला प्रशासन राज्य प्रशासन और जन साधारण के बीच की एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। राज्य सरकार के समस्त कार्यों को जिला स्तर पर स्थापित करने का कार्य जिला प्रशासन के द्वारा किया जाता है।
नियामकीय कार्य :– जिला प्रशासन के नियामकीय कार्यों के जिले में कानून एवं व्यवस्था बनाये रखना, अपराधों पर नियंत्रण करना, न्यायिक प्रशासन करना, आयकर, ब्रिकीकर चुंंगीकर, वनों पर कर एकत्रित करना, भू-राजस्व बकाया प्राप्त करना, भूमि प्रशासन के सामान्य कार्य आदि करना सम्मिलित है।
समन्वय संबंधी कार्य करना :– जिला प्रशासन के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों, केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार के विभिन्न कार्यालयों, स्वयंसेवी संगठनों, निजी संगठनों, गैर सरकारी संगठनों तथा अन्य संबद्ध संस्थानाें में समन्वय स्थापित करने का कार्य किया जाता है।
स्थानीय संस्थाओं का संचालन करना :– जिले में नगरीय संस्थाओं और ग्रामीण स्थानीय संस्थाओं के प्रशासन की सुचारू रूप से संचालित करने में जिला प्रशासन सहयोग प्रदान करता है।
विकासात्मक कार्य करना :- जिला प्रशासन के द्वारा जिले में विभिन्न प्रकार के विकास से संबंधित कार्य किये जाते है। विकास के कार्यों के अंतर्गत जनकल्याणकारी और लोकहितकारी कार्य किये जाते हैं। जिले में कृषि उत्पादन बढ़ाना, सहकारिता, पशुधन और मछली पालन को प्रोत्साहित करना, शिक्षा का प्रसार करना, समाज कल्याण के कार्य करना।
कार्मिक प्रशासन के कार्य करना :– कार्मिक प्रशासन के कार्यों में भर्ती करना, प्रशिक्षण देना, पदोन्नति करना, पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण करना और पुरस्कार एवं प्रोत्साहन देना आदि कार्यों को सम्मिलित किया जाता है।
निर्वाचन संबंधी कार्य करना :- जिले में लोकसभा, विधानमण्डल, स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों को करवाना जिला प्रशासन का महत्त्वपूर्ण कार्य होता है।
राहत कार्य करना :– जिले में प्राकृतिक आपदाओं जैसे- बाढ़, भूकम्प, सूखा, अकाल तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय जिला प्रशासन के द्वारा राहत कार्यों का संचालन किया जाता है।