पंचायती राज नोट्स | पंचायती राज

राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994

  • सन् 1928 में बीकानेर पहली देशी रियासत बनी जहाँ ग्राम पंचायत अधिनियम बनाया गया।
  • राजस्थान पंचायतराज विभाग की स्थापना सन् 1949 में हुई थी।
  • 1953 में “राजस्थान ग्राम पंचायत अधिनियम 1953” बनाया गया था।
  • 1959 में राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं का उद्घाटन हुआ।
  • मोहनलाल सुखाड़िया उस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री थे।
  • 1959 में राजस्थान जिला परिषद् अधिनियम 1959 तथा राजस्थान पंचायत समिति अधिनियम 1959 बनाये गये थे।
  • पहली बार इनके चुनाव 1960 में हुए थे।
  • 1964 में सादिक अली समिति का गठन किया गया था। इसनें ग्राम सेवकों के प्रशिक्षण पर अपनी अनुशंसा दी थी।
  • 1973 में गिरधारी लाल व्यास समिति का गठन किया गया था इस समिति ने पंचायत संस्थाओं को वित्तीय मजबूती हेतु सुझाव दिये थे।
  • 1984 में जयपुर में ‘इन्दिरा गाँधी ग्रामीण विकास पंचायत राज संस्थान’ की स्थापना की गयी थी। यह पंचायत राज संस्थाओं के जन प्रतिनिधियों और अधिकारियों को प्रशिक्षण देने वाला राजस्थान का सर्वोच्च संस्थान है।
  • राजस्थान विकास” राजस्थान के ग्रामीण व पंचायती राज विभाग द्वारा प्रकाशित पत्रिका का नाम है। जबकि ‘कुरूक्षेत्र’ भारत सरकार के ग्रामीण विकास व पंचायत राज विभाग की पत्रिका है।
  • 1988 में हरलाल सिंह खर्रा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। इसी समिति की अनुशंसा पर जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण का विलय जिला परिषद् में किया गया था।
  • 2011 में गुलाबचन्द कटारिया की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गयी। जिसमें 11वीं अनुसूची में  उल्लेखित सभी 29 कार्य पंचायत राज संस्थाओं को देने की अनुशंसा की थी। 
  • राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994, 23 अप्रैल, 1994 से लागू कर दिया था जिसे राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 कहा गया है।
  • इस अधिनियम के संदर्भ में राजस्थान पंचायती राज विस्तार नियम 1996 बनाया गया था जो 30 दिसम्बर, 1996 से लागू कर दिया गया है।
  • राज्य में वर्तमान  में 343 पंचायत समितियाँ, 11152 ग्राम पंचायत व 33 जिला परिषदें है।

ग्राम सभा

  • इसकी 4 बैठक होती है। (26 जनवरी, 1 मई, 15 अगस्त, 2 अक्टूबर ) इन तिथियों के 15 दिन पहले या 15 दिन बाद यह बैठकें कभी भी हो सकती है।
  • सरपंच इसकी अध्यक्षता करता है। उनकी अनुपस्थिति में उपसरपंच, अध्यक्षता करता है तथा दोनों की अनुपस्थिति में ग्राम सभा स्वयं अध्यक्षता का निर्धारण करती है।
  • ग्राम सभा की गणपूर्ति 1/10 होती है।
  • ग्राम सभा दो कार्य करती है।

पंचायती राज से सम्बंधित प्रश्न

  1. ग्राम पंचायत द्वारा गत वर्ष किये गये कार्यों की जांच करना।
  2. ग्राम पंचायत द्वारा आगामी वर्ष में किये जाने वाले कार्यों की रूपरेखा तैयार करना।

त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था क्या है

ग्रामसभा की बैठक में सदस्यों के अलावा प्रशासनिक अधिकारी, जनप्रतिनिधि तथा मीडिया के लोग भी इसमें भाग लेते हैं। इस कारण ग्राम सभा को सामाजिक अंकेक्षण कहा जाता है।

2 अक्टूबर,2009 को भीलवाड़ा भारत का पहला जिला बना जहाँ नरेगा कार्यों का सामाजिक अंकेक्षण किया गया था।ग्राम सभा की बैठक भारत में प्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण है। ग्रामसभा को लघु संसद भी कहा जाता है।

ग्राम पंचायत

  • इसमें सरपंच, उपसरपंच, वार्डपंच तथा ग्राम विकास अधिकारी (ग्राम सेवक) शामिल होते है।
  • किसी गाँव की 3000 जनसंख्या पर ग्राम पंचायत का गठन होता है इस जनसंख्या पर 9 वार्ड होते हैं।

नोट  – एक हजार जनसंख्या पर 2 अतिरिक्त वार्ड होेते हैं।

  • वार्ड का अध्यक्ष वार्ड पंच कहलाता है। सभी वार्ड पंच मिलकर अपने में से एक व्यक्ति को उपसरपंच चुनते है जबकि ग्राम पंचायत के सभी मतदाता प्रत्यक्ष रूप से सरपंच का चुनाव करते हैं।
  • उपसरपंच के चुनाव में सरपंच भी वोट देता है और उसके एक मत का मूल्य दो होता है।
  • प्रत्येक 15 दिन में कम से कम एक बार ग्राम पंचायत की बैठक अनिवार्य है।
  • ग्राम पंचायत की गणपूर्ति (कोरम) 1/3 हाेती है।
  • सरपंच एवं उपसरपंच के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाकर इन्हें हटाया जा सकता है। पहले 2 वर्ष तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है। अविश्वास प्रस्ताव लाने हेतु 1/3 वार्ड पंचों का समर्थन आवश्यक है। प्रस्ताव काे पारित करने के लिए 3/4 वार्ड पंचों का समर्थन जरूरी है। प्रस्ताव असफल हो जाने पर एक वर्ष तक नहीं लाया जा सकता है।
  • वार्डपंच, उपसरपंच तथा सरपंच तीनाें अपना इस्तीफा खण्ड विकास अधिकारी (BDO) को देते है।

पंचायत समिति

  • इसमें प्रधान, उपप्रधान, निर्वाचित सदस्य, पदेन सदस्य तथा खण्ड विकास अधिकारी शामिल होते हैं।
  • एक लाख की न्यूनतम जनसंख्या पर पंचायत समिति स्थापित होती है। इस जनसंख्या को 15 भागों में विभाजित किया गया। प्रत्येक 15000 अतिरिक्त जनसंख्या पर 2 अतिरिक्त भाग होते हैं।
  • पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्य अपने में से एक प्रधान और एक को उपप्रधान चुनते हैं।
  • पंचायत समिति में आने वाली सभी ग्राम पंचायतों के सरपंच, संबंधित विधानसभा सदस्य तथा संबंधित लोकसभा सदस्य इसके पदेन सदस्य होते हैं।
  • पदेन सदस्यों को भी मत देने का अधिकार है लेकिन वे प्रधान एवं उपप्रधान के चुनाव तथा उनके विरूद्ध लाये गए अविश्वास प्रस्ताव पर मत नहीं देते हैं।
  • पंचायत समिति की बैठक प्रत्येक माह में एक बार होनी अनिवार्य है।
  • पंचायत समिति की गणपूर्ति 1/3 होती है।
  • अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया ग्राम पंचायत के समान ही है।
  • पंचायत समिति के सदस्य व उपप्रधान अपना इस्तीफा प्रधान को देते है जबकि प्रधान अपना इस्तीफा जिला प्रमुख को देते हैं।

जिला परिषद्

  • इसमें जिला प्रमुख, उपजिला प्रमुख, निर्वाचित सदस्य, पदेन सदस्य तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) शामिल होते हैं।
  • किसी भी जिले की ग्रामीण जनसंख्या पर जिला परिषद् का गठन होता है। इस जनसंख्या को 17 भागों में विभाजित किया जाता है। एक लाख अतिरिक्त जनसंख्या पर 2 अतिरिक्त भाग होते हैं।
  • निर्वाचित सदस्य अपने में से जिला प्रमुख व उपजिला प्रमुख का चुनाव करते हैं।
  • जिला परिषद् के अंतर्गत आने वाली सभी पंचायत समितियों के प्रधान, सभी ग्रामीण विधायक, संबंधित लोकसभा सदस्य तथा राज्यसभा का ऐसा सदस्य जिनका नाम ग्रामीण मतदाता के रूप में पंजीकृत है, इसके पदेन सदस्य होते हैं।
  • पदने सदस्यों को भी मत देने का अधिकार होता है लेकिन जिला प्रमुख व उपजिला प्रमुख के चुनाव तथा अविश्वास प्रस्ताव में उन्हें मत देने का अधिकार नहीं होता है।
  • जिला परिषद् की बैठक 3 माह में एक बार होनी जरूरी है।
  • इसकी गणपूर्ति 1/3 होती है।
  • अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया ग्राम पंचायत की भाँति है।
  • जिला परिषद् के सदस्य व उपजिला प्रमुख अपना इस्तीफा जिला प्रमुख को देते है जबकि जिला प्रमुख अपना इस्तीफा संभागीय आयुक्त को देते हैं। 

पंचायत राज संस्थाओं के सभी जनप्रतिनिधियों को पीठासीन अधिकारी पद तथा संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ दिलाते हैं। निर्वाचन 30 दिन के भीतर शपथ लेनी अनिवार्य है नहीं तो पद रिक्त माना जायेगा।

दो बच्चों वाला नियम लागु करने वाला राजस्थान भारत का पहला राज्य है। जनवरी-फरवरी 2015 तक राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव 10 बार हो चुके है। 2020 में आगामी पंचायती राज चुनाव हाेने हैं।

ग्राम पंचायत में जितने पंचों की संख्या निर्धारित होती है, ग्राम पंचायत क्षेत्र को उतने ही भागों में बाँटा जाता है तथा प्रत्येक भाग को वार्ड कहा जाता है। प्रत्येक वार्ड के पंजीकृत वयस्क मतदाताओं का समूह वार्ड सभा कहलाती है।

वार्ड सभा का अध्यक्ष वार्ड पंच होता है तथा वार्ड पंच की अनुपस्थिति में उपस्थित सदस्यों द्वारा बहुमत से से निर्वाचित सदस्य वार्ड सभा की अध्यक्षता करता है। वार्डसभा की प्रतिवर्ष कम से कम 2 बैठकें (प्रत्येक 6 माह में एक) होगी। वार्ड सभा की गणपूर्ति कुल सदस्य संख्या का 10% होती है।

पेसा अधिनियम

अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज का विस्तार अधिनियम 1996

[The Panchayats (Extension to the Scheduled Areas)]

  • सन् 1995 में पंचायती राज का अनुसूचित क्षेत्रों में भी विस्तार कर दिया गया।
  • दिलीप सिंह भूरिया की अध्यक्षता में एक समिति (1996) ने यह अनुशंसा की, कि पंचायतों का विस्तार अनुसूचित क्षेत्रों में भी हाेना चाहिए।
  • यह कानून उन स्थानों हेतु निर्मित किया गया है, जहाँ पंचायती राज अधिनियम 1993 लागू नहीं होता है।
  • यह कानून 24 दिसम्बर, 1996 में लागू हुआ। यह मुख्यत: पांचवी अनूसूची वाले क्षेत्रों के लिए है।
  • वर्तमान में दस राज्यों में पांचवी अनुसूची के क्षेत्र आते हैं- आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान।

अधिनियम का उद्देश्य

  1. पंचायतों से जुड़े प्रावधानों को जरूरी संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्राें में विस्तारित करना।
  2. जनजातिय जनसंख्या को स्वशासन प्रदान करना।
  3. पारम्परिक परिपाटियों की सुसंगतता में उपयुक्त प्रशासनिक ढ़ाँचा विकसित करना।
  4. जनजातीय समुदायों की परम्पराओं एवं रिवाजों की सुरक्षा तथा संरक्षण करना।
  5. सहयात्री लोकतंत्र के तहत ग्राम प्रशासन स्थापित करना।

अधिनियम की विशेषताएँ

  1. इन क्षेत्रों के ग्राम सभा में कम से कम आधी सीट जनजातीय के लिए आरक्षित होगी।
  2. खनिज के उत्पादन के लिए लाइसेंस देने से पहले इनकी अनुशंसा ली जायेगी।
  3. इन पंचायती संस्थाओं को ऋण व्यवस्था को नियंत्रित करने की शक्ति दी गयी है।
  4. ग्रामीण बाजारों का विनियमन व भूमि बिक्री को रोकने के संदर्भ में इन संस्थाओं को विशेष अधिकार दिये गए है।
  5. सभी स्थानीय संस्थाओं के अध्यक्ष का पद जनजातीय लोगों के लिए आरक्षित किया गया तथा भूमि अधिग्रहण व खनन के लिए सरकार द्वारा ग्राम सभा तथा पंचायतों से विचार विमर्श किया जाएगा। 

नोट – “पथ्थलगढ़ी” – पेशा एक्ट 1996 के प्रावधानों को उचित तरीके से लागू नहीं करने पर अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा एक्ट 1996 के प्रावधानों को उकेर कर पत्थर गाढ़ना पथ्थलगढ़ी कहलाता है। यह आंदोलन झारखंड से प्रारम्भ हुआ।

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