राज्य लोक सेवा आयोग संवैधानिक स्थिति
- संविधान के भाग VIV में अनुच्छेद 315 से 323 में केन्द्रीय लोक सेवा आयोग के साथ-साथ राज्य लोक सेवा आयोग का भी प्रावधान है।
राज्य लोक सेवा आयोग संरचना
- राज्य लोक सेवा आयाेग में एक अध्यक्ष व अन्य सदस्य होते हैं।
- अन्य सदस्यों की संख्या संविधान में निश्चित नहीं है।
- आयोग के सदस्याें की वांछित योग्यता का भी जिक्र संविधान में नहीं है लेकिन यह आवश्यक है कि आयोग के आधे सदस्यों को भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन कम से कम 10 वर्ष काम करने का अनुभव है।
राज्य लोक सेवा आयोग नियुक्ति एवं कार्यकाल (अनुच्छेद 316)
- आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति संबंधित राज्य का राज्यपाल करता है।
- अध्यक्ष एवं सदस्य पद ग्रहण करने की तारीख से 6 वर्ष की अवधि तक या 62 वर्ष की आयु तक (इनमें जो भी पहले हो) अपना पद धारण कर सकते हैं।
- हालांकि वे कभी भी राज्यपाल को अपना त्याग पत्र सौंप सकते हैं।
- राज्यपाल दो पारिस्थितियों में राज्य लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है।
- जब अध्यक्ष का पद रिक्त हो।
- जब अध्यक्ष अपना कार्य में अनुपस्थित या अन्य दूसरे कारणों की वजह से नहीं कर पा रहा हो।
राज्य लोक सेवा आयोग निष्कासन या बर्खास्तगी (अनुच्छेद 317)
- अध्यक्ष व सदस्यों को केवल राष्ट्रपति ही हटा सकता है न कि राज्यपाल।
- राष्ट्रपति उन्हें उसी आधार पर हटा सकते हैं जिन आधारों पर संघ लोक सेवा आयाेग (UPSC) के अध्यक्ष व सदस्यों को हटाया जाता है जो निम्न है-
- उसे दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।
- अपनी पदावधि के दौरान अपने पद के कर्त्तव्यों के बाहर किसी संवेतन नियोजन में लगा हो।
- अगर राष्ट्रपति यह समझता है कि वह मानसिक या शारीरिक रूप से अपने पद पर बने रहने के योग्य नहीं है।
- इसके अलावा राष्ट्रपति राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एव अन्य सदस्यों को उनके कदाचार के कारण भी हटा सकता है परंतु ऐसे मामलों में राष्ट्रपति इसे उच्चतम न्यायालय को संदर्भित करता है। उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई सलाह राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी होती है।
राज्य लोक सेवा आयोग स्वतंत्रता
- केवल संविधान में वर्णित आधारों पर ही अध्यक्ष एवं सदस्यों को हटाया जा सकता है।
- नियुक्ति के बाद उनकी सेवाओं में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
- वेतन, भत्ते व पेंशन सहित सभी खर्च राज्य की संचित निधि से मिलते हैं।
- अध्यक्ष या सदस्य को पुन: नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
राज्य लोक सेवा आयोग कार्य (अनुच्छेद 320)
- यह राज्य की सेवाओं में नियुक्ति के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करता है।
- कार्मिक प्रबंधन से संबंधित निम्नलिखित विषयों पर अपनी परामर्श देता है-
- सिविल-सेवाओं और सिविल पदों के लिए भर्ती की पद्धतियों से संबंधित सभी विषयों पर सलाह देना।
- सिविल सेवाओं और पदों पर नियुक्ति करने में तथा सेवा प्रोन्नति व एक सेवा से दूसरी सेवा में तबादले के लिए अनुसरण किए जाने वाले सिद्धान्तों के संबंध में सलाह देना।
- राज्य सरकार के अधीन काम करने के दौरान किसी व्यक्ति को हुई हानि काे लेकर पेेंशन का दावा करना और उसी राशि का निर्धारण करना।
- कार्मिक प्रबंधन से संबंधित अन्य मामलों में सलाह देना।
नोट :– अनुुच्छेद 323 के तहत राज्य लोक सेवा आयोग हर वर्ष अपने कार्यों की प्रतिवेदन राज्यपाल को देता है। राज्यपाल इस रिपोर्ट के साथ-साथ ऐसे ज्ञापन विधानमण्डल के समक्ष रखता है जिसमें आयोग द्वारा अस्वीकृत मामलें और उनके कारणों का वर्णन किया जाता है।