भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन है। इसलिए संविधान के भाग 3 को मैग्नाकार्टा कहा जाता हैं।
मौलिक अधिकार क्या है
प्रारम्भ में नागरिकों के 7 मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन, 1978 के द्वारा सम्पत्ति के मौलिक अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से बाहर कर दिया, जिसका वर्णन अनुच्छेद 31 में है।
नागरिकों के मौलिक अधिकार अमेरिका के संविधान से लिये गये हैं। मौलिक अधिकारों का रक्षक सर्वोच्च न्यायालय को बनाया गया हैं।
मौलिक अधिकार कितने प्रकार के होते हैं
- समानता का अधिकार
- स्वतन्त्रता का अधिकार
- शोषण के विरूद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
- शिक्षा व संस्कृति का अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
समानता का अधिकार
- समानता के अधिकार का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक है।
- अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत में प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता है।
- अनुच्छेद 15 के अनुसार समाज में किसी के साथ भी जाति, भाषा, धर्म, वर्ण, वंश और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है।
- अनुच्छेद 16 के अनुसार राजकीय सेवाओं में सभी को समान योग्यता के आधार पर रोजगार के अवसरों की समानता है।
- अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता का अंत किया गया व अस्पृश्यता को राष्ट्रीय अपराध घोषित किया गया।
- अनुच्छेद 18 के द्वारा शिक्षा व सेना को छोड़कर सभी प्रकार की उपाधियों का अंत किया गया।
स्वतन्त्रता का अधिकार
अनुच्छेद 19 से 22 , अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत 6 प्रकार की स्वतन्त्रता का वर्णन है। अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से सम्बन्धित हैं।
अनुच्छेद 19
- भाषण व विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
- शान्तिपूर्वक अस्त्र-शस्त्र रहित सम्मेलन बुलाने की स्वतंत्रता
- संघ व समुदाय बनाने की स्वतंत्रता
- भारत में कहीं पर भी घुमने-फिरने की स्वतंत्रता
- भारत में कहीं पर आवास की स्वतंत्रता (जम्मू कश्मीर अपवाद)
- कोई भी रोजगार चुनने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 20
- अनुच्छेद 20 के अनुसार – अपराधों से दोष सिद्धि का अधिकार।
- बिना कानून तोड़े अपराधी सिद्ध नहीं किया जा सकता है।
- एक ही अपराध के लिए दो बार दण्ड नहीं दिया जा सकता।
- अपने विरूद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 21
- अनुच्छेद 21 के अनुसार – प्राण व दैहिक स्वतंत्रता का (नागरिकों का यह अधिकार आपातकाल में भी समाप्त नहीं होता) ।
- 21क (86वां संविधान संशोधन-2002 के अनुसार): 6 से 14 वर्ष तक के बालकों को अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 22
- अनुच्छेद 22 के अनुसार – गिरफ्तारी का निषेध
- बिना कारण बताए गिरफ्तारी नहीं हो सकती।
- गिरफ्तारी के 24 घण्टे के अन्दर समीप के न्यायालय में प्रस्तुत किया जायेगा।
- अपने बचाव हेतु अधिवक्ता की सहायता लेने का अधिकार।
शोषण (Exploitations) के विरूद्ध अधिकार – अनुच्छेद 23 से 24
- अनुच्छेद 23 के द्वारा बालश्रम का निषेध किया गया। बेगार की प्रथा का अंत किया।
- अनुच्छेद 24 के द्वारा बालश्रम का निषेध किया गया। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को भारी उद्योगों में जोखिम पूर्ण कार्यों पर मजबूर नहीं रखा जा सकता।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 25 से 28
- अनुच्छेद 25 – प्रत्येक व्यक्ति को अन्तःकरण की स्वतंत्रता प्रदान की गई जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति किसी भी धर्म की पूजा-अर्चना, उपासना कर सकता हैं।
- अनुच्छेद 26 – किसी भी धार्मिक संगठन की सदस्यता ली जा सकती है और किसी भी धर्म के प्रचार व प्रसार का कार्य किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 27 – धार्मिक चन्दे को आयकर से मुक्त रखा गया।
- अनुच्छेद 28 के अनुसार – राजकीय अनुदानित, राजकीय मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में किसी धर्म विशेष की शिक्षा नहीं दी जा सकती और धर्म के आधार पर प्रवेश देने से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
शिक्षा व संस्कृति का अधिकार – अनुच्छेद 29, 30
- अनुच्छेद 29 के अनुसार – प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भाषा, साहित्य और लिपि को सुरक्षित रखने का अधिकार।
- अनुच्छेद 30 – भाषा व धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने का अधिकार। मुस्लिम शिक्षण हेतु – प्राथमिक शिक्षा हेतु – मकतब एवं उच्च शिक्षा हेतु – मदरसे स्थापित किये जाते हैं।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right of Constitution Remedies) – अनुच्छेद 32 के अनुसार
संवैधानिक उपचारों को डॉ. बी.आर. अम्बडेकर ने मौलिक अधिकारों की “हृदय व आत्मा” कहा है। संवैधानिक उपचारों के माध्यम से कोई भी व्यक्ति मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर न्यायालय की शरण ले सकता है।
मौलिक अधिकारों की सुरक्षा
मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायालय 5 प्रकार की याचिकाएं (Writ) जारी कर सकता है।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण
- परमादेश
- प्रतिषेध
- उत्प्रेषण
- अधिकार पृच्छा
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) – किसी भी व्यक्ति को बिना अपराध बताए अधिकतम 24 घंटे तक बंदी बनाया जा सकता हैं। 24 घंटे के अन्दर उसे सक्षम न्यायाधीश के सामने उपस्थित करना तथा अपरातततध बताना आवश्यक हैं।
2. परमादेश (Mendamus) – न्यायालय के द्वारा ये याचिका उस समय जारी की जाती है जब कोई पदाधिकारी अपने कार्यों को संवैधानिक तरीके से पूरा नहीं करता हैं।
3. प्रतिषेध (Prohibition) – यह अर्द्ध न्यायिक प्रकार की याचिका होती है इसमें न्यायालय के द्वारा व्यक्ति/संस्था को कार्य को रोकने के लिए अथवा स्थिति को जारी रखने के लिए आदेश दिया जाता है।
4. उत्प्रेषण (Certiorari) – यह अर्द्ध न्यायिक प्रकार की याचिका है। इसमें कोई ऊपरी न्यायालय अपने से अधीनस्थ न्यायालय को किसी मुकदमे का निर्णय करने का आदेश दे सकता है अथवा मुकदमे को अपने पास मंगवाकर स्वयं उसका निर्णय कर देता हैं।
5. अधिकार पृच्छा (Quo-Warranto) – यह याचिका न्यायालय के द्वारा उस अधिकारी को दी जाती है जिसने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य किया है। न्यायालय उससे पूछता है आपने किस अधिकार के अन्तर्गत यह कार्य किया है।