rajasthan ki sanskriti

राजस्थानी खान-पान

सिरावण :– ग्रामीण क्षेत्र में सुबह का भोजन। सुबह के भोजन को कलेवा भी कहा जाता है।   भात/रोट :– दोपहर का भोजन जिसमें जौ, मक्का एवं बाजरे की रोटी तथा मिर्ची, छाछ, दही व हरी सब्जियां होती है। ब्यालू :– शाम का भोजन। सोगरा :– बाजरे के आटे से बनी मोटी रोटी जो आकरी सेकी जाती …

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जनजाति विकास कार्यक्रम

बांसवाड़ा जिले में कुशलगढ़ में वर्ष 1956 में बहुउद्देशीय जनजातीय विकास खण्ड प्रारम्भ किया गया था। परिवर्तित क्षेत्र विकास कार्यक्रम यह कार्यक्रम मीणा बहुल दक्षिणी व दक्षिणी पूर्वी जिलों में शुरू की गई थी। उद्देश्य इस योजना का लक्ष्य जनजातियों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना तथा बेरोजगारी को दूर करना। इस योजना में पेयजल, ग्रामीण …

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राजस्थान की जनजाति विवरण

आदिवासी या जनजाति – ये लोग सभ्यता के प्रभाव से वंचित रहकर अपने प्राकृतिक वातावरण के अनुसार जीवन यापन करते हुए अपनी भाषा, संस्कृति, रहन-सहन आदि को संरक्षित किए हुए हैं। राजस्थान की जनजाति विवरण राजस्थान भारत के 6 जनजाति बहुल राज्यों में से एक हैं। राजस्थान का समूचा दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्र एवं दक्षिणी पूर्वी पठारी …

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कालबेलिया जनजाति | Kalbaliya Janjati

कालबेलिया जनजाति जनसंख्या – 1,31,911 निवास क्षेत्र – पाली, जोधपुर, राजसमंद, सिरोही, अजमेर, चित्तौड़, उदयपुर, राजसमन्द आदि। नृत्य एवं गायन में दक्ष। प्रमुख वाद्य – बीन एवं डफ। प्रमुख नृत्य – इंडोणी, शंकरिया, पणिहारी, बागड़िया आदि। गुलाबो – इस जनजाति की प्रसिद्ध नृत्यांगना, इन्होंने कालबेलिया नृत्य को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान प्रदान की है। कालबेलिया को साँप पालक जाति माना जाता है। …

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नट जाति राजस्थान | Nat Jati

जनसंख्या – 65894 निवास क्षेत्र – अलवर, जोधपुर, जयपुर, पाली, टोंक, भीलवाड़ा, अजमेर आदि। करतब दिखाने में माहिर जाति। कठपुतली नृत्य में माहिर जाति। जाति बागरी – खेतों की रखवाली कर अपना भरण-पोषण करने वाली जाति। कहार – पालकी उठाने एवं घरों में पानी भरने का कार्य कर अपना जीवनयापन करने वाली जाति। ओड़ – मिट्‌टी खोदने, पत्थरों को खोदने …

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कथौड़ी जनजाति | Kathodi Janjati

यह जनजाति मूलत: महाराष्ट्र की है। विस्तार – उदयपुर जिले की कोटड़ा, झाड़ोल एवं सराड़ा पंचायत समिति। जनसंख्या – 4833 कथौड़ी जनजाति | Kathodi Janjati ये राज्य में बिखरी हुई अवस्था में निवास करती हैं। मुख्य व्यवसाय – खेर के जंगलों के पेड़ों से कत्था तैयार करना। कथौड़ी जनजाति एकमात्र ऐसी जनजाति है जिसे मनरेगा में 200 दिवस …

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कंजर जनजाति राजस्थान | Kanjar Janjati

कंजर जनजाति राजस्थान | Kanjar Janjati कंजर नाम संस्कृत शब्द ‘काननचार’ अथवा ‘कनकचार’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है – जंगलों में विचरण करने वाला। जनसंख्या – 53818 ( हाड़ौती क्षेत्र में सर्वाधिक ) विस्तार – कोटा, बूँदी, बारां, झालावाड़, भीलवाड़ा, अलवर, उदयपुर आदि जिलें। सामाजिक जीवन कंजर जनजाति के परिवारों में पटेल परिवार का मुखिया …

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डामोर जनजाति | Damor Janjati

विस्तार – दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर जिले की सीमलवाड़ा पंचायत समिति तथा बांसवाड़ा जिले में गुजरात सीमा पर डामोर जनजाति मुख्यतया पाई जाती हैं। डामोर जनजाति | Damor Janjati यह जनजाति मूल रूप से गुजरात की है। राज्य की कुल आदिवासी जनसंख्या में इनका भाग 0.63 प्रतिशत हैं। जनसंख्या – 91.5 हजार। इन्हें डामरिया भी कहा जाता हैं। …

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सांसी जनजाति राजस्थान | Sansi Janjati

साँसी जनजाति की उत्पत्ति सांसमल नामक व्यक्ति से मानी जाती है। सांसी जनजाति राज्य के भरतपुर जिले एवं झुंझुनूं के कुछ भागों में पाई जाती हैं। सांसी जनजाति राजस्थान जनसंख्या :- 86524 यह खानाबदोश जनजाति हैं। इसे दो भागों में बांटा जा सकता हैं – (i) बीजा (ii) माला सामाजिक जीवन ये लोग बहिर्विवाही होते हैं …

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सहरिया जनजाति राजस्थान | Sahariya Janjati

यह राज्य की कुल जनजातियों का 0.99 प्रतिशत हैं। सहरिया जनजाति की जनसंख्या 1.11 लाख हैं। वनवासी जाति। सहरिया जनजाति की उत्पत्ति फारसी भाषा के ‘सहर’ शब्द से हुई जिसका अर्थ जंगल होता है। सहरिया जनजाति राजस्थान राज्य की 99.2 प्रतिशत सहरिया जनजाति बारां जिले में किशनगज एवं शाहबाद तहसीलों में निवास करती हैं। कर्नल जेम्स टॉड …

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